क्यों कांग्रेस को प्रजातंत्र के हत्यारे के नाम से जाना जाता है?

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देश में प्रजातंत्र की मर्यादाओं को तार-तार करने का कांग्रेस का पुराना इतिहास है और कांग्रेस पार्टी का चरित्र प्रजातंत्रिक मूल्यों के विपरीत है। पिछले कई दशकों से गांधी परिवार का ही सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष बनता रहा है, इस पार्टी में अध्यक्ष का चुनाव मात्र दिखावे के लिए होता। वंशवाद को जायज ठहराने वाली इस पार्टी ने देश में प्रजातंत्रातिक संस्थानों से लेकर समाज में भी प्रजातंत्रातिक मूल्यों को कुचलने का काम किया है। वंशवादी परंपरा की सोच रखने वाली कांग्रेस जमात ने इस देश में राज्य सरकारों पर कब्जा बनाये रखने के लिए राज्यों में राज्यपाल के संवैधानिक पद का जमकर दुरुपयोग जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह की सरकारों के दौरान हुए हैं। आइये आपको बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने कब-कब राज्यों में प्रजातंत्र की हत्या की है-

1952 में तमिलनाडु में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या – राज्य के संवैधानिक पद राज्यपाल का दुरुपयोग पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समय से ही शुरु हो गया था। 1952 में मद्रास राज्य, जिसे अब तमिलनाडु कहा जाता है, के चुनाव में अधिक सीट जीतने वाले संयुक्त मोर्चे के गठबंधन को सरकार बनाने का राज्यपाल ने निमंत्रण नहीं दिया बल्कि कम सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता सी राजगोपालचारी को आमंत्रित कर दिया, जो उस समय विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे।

1959 में केरल में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या –भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साल 1957 में चुनी गई। लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया। यह हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री और आजादी के नायक जवाहर लाल नेहरू का कार्यकाल था। यह भारत की पहली क्षेत्रीय सरकार थी जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।

1982 में हरियाणा में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या -हरियाणा में 36 साल पहले 21 से 23 मई 1982 तक कर्नाटक जैसा ही राजनीतिक घटनाक्रम हुआ था। लोकदल नेता चौधरी देवीलाल और भाजपा नेता डॉ. मंगल सेन चंडीगढ़ में हरियाणा के राज्यपाल जीडी तपासे से मिले और उन्हें 90 में से 46 विधायकों के हस्ताक्षर वाला समर्थन पत्र सरकार बनाने के लिए सौंपा। राज्यपाल ने विधायकों के हस्ताक्षर की सत्यता की जांच करने के लिए दोनों नेताओं को 24 मई तक इंतजार करने को कहा और 23 मई को ही 36 विधायकों वाली कांग्रेस के नेता चौधरी भजन लाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। राज्यपाल ने भजन लाल को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय भी दिया। इससे नाराज चौधरी देवीलाल और डॉ. मंगल सेन ने विधायकों के साथ चंडीगढ़ राजभवन में परेड भी की, मगर हरियाणा राजभवन में उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। तब भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस संबंध में तत्कालीन राष्ट्रपति से विरोध भी जताया था। इन दोनों नेताओं ने तब आरोप लगाया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारे पर राज्यपाल ने बहुमत के गठबंधन को मौका नहीं दिया।

 

1984 में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या –1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी.के. नेहरू ने केंद्र के दबाव के बावजूद फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया। अंततः केंद्र की सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट मंगवाई गई। राज्य सरकार को बर्खास्त किया गया।

1984 में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या- 1983 में आंध्र-प्रदेश में तेलगूदेशम के नेता एन टी रामा राव ने पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनायी थी। सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री एनटी रामाराव को अचानक हार्ट सर्जरी कराने के लिए अमेरिका जाना पड़ा, मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से राज्य की सरकार को बर्खास्त करवा दिया। और तत्कालीन वित्तमंत्री एन भाष्कर राव को सरकार बनाने का राज्यपाल ने मौका दे दिया, लेकिन एन टी रामा राव ने स्वदेश वापसी के साथ ही स्थिति को एक बार फिर अपने पक्ष में कर लिया और मुख्यमंत्री बन गये।

 

1998 में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या- साल 1996 में यूपी में हुए विधानसभा चुनावों में भी कर्नाटक जैसे हालात सामने आए थे, जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और 424 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 174 सीटें मिली थीं। हालांकि उस समय भाजपा ने अपने से कम 67 सीटों वाली बसपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और मायावती मुख्यमंत्री बनी थी। इसी गठबंधन के तहत कल्याण सिंह ने भी मुख्यमंत्री पद के रूप में जिम्मेदारी संभाली। लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सन 1998 में 21-22 फरवरी की रात सूबे के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अचानक कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दिया और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ भी दिला दी। इसके विरोध में भाजपा हाईकोर्ट गई, कोर्ट ने राज्यपाल के इस कदम को अनुचित मानते हुए उनके आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि इससे पहले ही जगदंबिका पाल का शपथ ग्रहण हो चुका था लेकिन कोर्ट ने उसे भी रद्द कर दिया।

 

2005 में झारखंड में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या– वर्ष 2005 में झारखंड में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने कम सीटों पर जीत हासिल करने वाले शिबू सोरेन को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। हालांकि शिबू सोरेन विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में विफल रहे और नौ दिनों के बाद ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एनडीए ने राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से आखिरकार 13 मार्च, 2005 को अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार सत्ता में आई।

2009 में कर्नाटक  में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हंसराज भारद्वाज को 25 जून, 2009 को मनमोहन सरकार ने कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया। भारद्वाज ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल का कहना था कि येदियुरप्पा सरकार ने फर्जी तरीके से बहुमत हासिल किया है।

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