2014 में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपने सबसे करीबी, भरोसेमंद साथी अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त करवा दिया, अमित शाह की नियुक्ति किसी चुनावी प्रक्रिया से नहीं हुई थी, चूँकि प्रधानमंत्री मोदी चाहते थे इसलिए उनको इस पद पर किसी का वोरोध नहीं झेला पड़ा| मोदी और अमित शाह ने पार्टी पर अपनी पकड़ ऐसी मज़बूत की कि बड़े बड़े नेता और मंत्री भी खौफ खाने लगे, सरकार और प्रधानमंत्री के सम्बन्ध में यह लोग अपनी सरकारी कार में भी बात करने से भी डरते थे, उनको अहसास रहता कि कहीं कोई इंस्ट्रूमेंट रिकॉर्डिंग का मूवी बनाने का न लगा हो|

बीजेपी के अंदर दो धड़े हैं एक धड़ा है लाल कृष्ण अडवाणी के समर्थकों का है, प्रधानमंत्री और बीजेपी पार्टी अडवाणी ग्रुप के नेताओं पर विशेष नज़र रखती है, तक़रीबन सभी को पार्टी में साइड लाइन किया जा चुका है, सूत्रों के मुताबिक गुजरात चुनाव जीतने के बाद बीजेपी अब पार्टी के अंदर मौजूद बाग़ी नेताओं को बहार का रास्ता दिखाने पर विचार कर रही है, इन नेताओं में शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिंह लोग शामिल हो सकते हैं|
ललित मोदी कांड के समय मोदी राजिस्थान की मुख्यमंत्री से इस्तीफा लेना चाहते थे वहां हुकुम सिंह का नाम उन दिनों मुख्यमंत्री के लिए चर्चा में था पर वसुंधरा राजे के एक दाव के आगे मोदी और अमित शाह को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे, सूत्रों के मुताबिक वसुंधरा राजे को जैसे ही आभास हुआ कि पार्टी नेतत्व उन से इस्तीफा मांगने वाला है, उन्होंने राजिस्थान के 25 अपने समर्थक सांसदों का इस्तीफा सरकार के पास गुप्त रूप से भेज दिया था, वसुंधरा राजे के इस दाव की कोई काट बीजेपी नेतृत्व के पास नहीं थी और मामला निपट गया था|
सूत्रों के मुताबिक हिंदी भाषी राज्यों के बहुत बड़ी संख्या में ऐसे सांसद हैं जो प्रधानमंत्री और पार्टी नेतृत्व से खफा हैं, यह सांसद केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी बात भी नहीं कह पते है, पार्टी के अंदर अनुसाशन का ऐसा सख्त ढांचा तैयार हो चुका है कि किसी को भी बोलने की इजाजात नहीं है, अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहे दो दर्ज़न के करीब सांसद आगामी समय में किसी भी समय पार्टी से अपना नाता तोड़ सकते हैं|















