मोदी सरकार की मनमानी पर एक बार फिर भड़के सुप्रीम कोर्ट के जज, बोले- न्यायपालिका में टांग मत अड़ाओ

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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस चेलमेश्वर ने बीते हफ्ते मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा को एक पत्र लिखकर फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग की है। जस्टिस चेलमेश्वर के पत्र से ये लग रहा है कि मोदी सरकार अब न्यायव्यवस्था में भी हस्तक्षेप कर उन्ही जजों की नियुक्ति होने दे रही है जिन्हें वो चाहती है।

जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि कोर्ट ये निर्णय ले कि कॉलेजियम सिस्टम को नजरअंदाज कर हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप कितना उचित है।

21 मार्च को लिखे गए इस पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा है कि सरकार कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को चुनने में पक्षपाती रवैया अपना रही है। सरकार जिन नामों से असहज महसूस कर रही है उन्हें वो नजरअंदाज या टाल दे रही है। ये न्यायपालिक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहा है।

ऐसे समय जब राज्यसभा में विपक्षी दल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रहे हैं, जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा फुल मीटिंग कोर्ट की मांग उनपर दोहरा दबाव बनाएगी। बता दें, कि इससे पहले भी जस्टिस चेलमेश्वर की अगुआई में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कांफ्रेस कर चुके हैं।

‘द प्रिंट’ की खबर के अनुसार मोदी सरकार नहीं चाहती है कि न्यायाधीश पी कृष्ण भट्ट को हाईकोर्ट का जज बनाया जाए।

कोलेजियम (जजों की नियुक्ति करने वाली समिति) ने अगस्त 2016 में, ज़िला न्यायाधीश पी कृष्ण भट्ट को हाईकोर्ट जज बनाने की सिफारिश की थी। मगर किसी सिविल जज ने उन पर आरोप लगा दिया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद आरोपों को निराधार और मनगढ़ंत बता चुके हैं।

इसके बाद अप्रैल 2017 में, सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने दोबारा से भट्ट के नाम का प्रस्ताव भेजा लेकिन इसके बाद भी सरकार ने सिफारिश नहीं मानी। जबकि कानून के मुताबिक सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। दोबारा नाम भेजने पर कोलेजियम की बात माननी पड़ती है।

अब मोदी सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट से सिफारिश करके फिर से न्यायमूर्ति भट्ट के ख़िलाफ़ मामले को खुलवा दिया है। जस्टिस चेलमेश्वर का कहना है कि सरकार कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस माहेश्वरी से सीधा संवाद कर रही है। उन्होंने न्यायमूर्ति भट्ट के खिलाफ दोबारा मामले की जांच को लेकर आलोचना की है।

उन्होंने पत्र में लिखा है कि कैसे एक हाईकोर्ट का जज सरकार के कहने पर उस न्यायधीश की जाँच कर सकता है जिसका नाम कोलेजियम के भेजने पर भी सरकार मान नहीं रही है।

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