भारत में सोशल मीडिया के नियमों का अचानक कड़ा होना युवाओं के बीच एक अज्ञात डर का दौर शुरू कर दिया है। जब भारतीय डिजिटल सेवा नियामक प्राधिकरण ने 15 अप्रैल को नए गाइडलाइन्स जारी किए, तो किसी को यकीन नहीं था कि ये नियम सिर्फ गलत जानकारी को रोकने के लिए नहीं, बल्कि आम बातचीत को भी दबा देंगे। अब एक फोटो शेयर करना, एक मीम पोस्ट करना या एक ट्वीट लिखना भी एक जांच का विषय बन सकता है।
क्यों बदले नियम?
पिछले दो सालों में भारत में सोशल मीडिया पर फैली झूठी खबरों ने कई भीड़ जन्म दी हैं। जून 2023 में उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक बच्चे की अफवाह से लिंचिंग हुई थी। उसके बाद से सरकार ने हर बड़े प्लेटफॉर्म को भारत में एक नियामक नियुक्त करने को कहा। अब भारतीय डिजिटल सेवा नियामक प्राधिकरण ने नए नियम बनाए — जिसमें यूजर्स को अपने पोस्ट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। अगर कोई पोस्ट अपराध, अश्लीलता या आतंकवाद को प्रोत्साहित करती है, तो उसकी जांच होगी।
युवाओं की प्रतिक्रिया: डर या जागृति?
दिल्ली के एक कॉलेज में पढ़ने वाली आशा राठौड़ (21) ने कहा, "मैं अब कुछ भी नहीं लिखती। पहले मैं हर चीज़ पर टिप्पणी करती थी — अब डर लगता है कि कहीं मेरा एक जोक भी कानून का उल्लंघन न बन जाए।" उसकी तरह लाखों युवा अपने खातों को निजी बना रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अप्रैल के पहले हफ्ते में इंस्टाग्राम और ट्विटर पर भारतीय यूजर्स के निजी खातों की संख्या 42% बढ़ गई।
लेकिन यह सिर्फ डर नहीं है। कुछ युवा इसे एक अवसर मान रहे हैं। मुंबई के एक डिजिटल एक्टिविस्ट अर्जुन मेहता ने कहा, "हमारी आवाज़ को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है, लेकिन ये नियम हमें सीख रहे हैं कि डिजिटल जगत में जिम्मेदारी क्या है।" उन्होंने एक नए कैम्पेन की शुरुआत की है — "पोस्ट करो, पर सोचो" — जिसमें युवाओं को नियमों के बारे में शिक्षा दी जा रही है।
क्या ये नियम वाकई कारगर हैं?
एक अध्ययन के अनुसार, पिछले छह महीनों में भारतीय डिजिटल सेवा नियामक प्राधिकरण ने 1.8 मिलियन पोस्ट्स हटाए, जिनमें से 78% अश्लीलता या घृणा के संदेश थे। लेकिन एक बात अजीब है — इनमें से सिर्फ 12% पोस्ट्स असली अपराध की घोषणा करते थे। बाकी ज्यादातर विरोध की आवाज़ें या मजाक थे।
डिजिटल नीति विशेषज्ञ डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा, "ये नियम अच्छे इरादों से बने हैं, लेकिन उनका अनुप्रयोग बहुत बड़ा बल्ला है। जब एक ट्वीट के लिए तीन दिन की जांच हो रही हो, तो यह डिजिटल आजादी का अंत नहीं, बल्कि उसका धीमा अंत है।"
क्या अगला कदम है?
अगले तीन महीनों में, भारतीय डिजिटल सेवा नियामक प्राधिकरण ने एक नए डिजिटल न्यायालय की स्थापना की घोषणा की है, जहां आम यूजर्स के मामले सुने जाएंगे। यह न्यायालय ऑनलाइन होगा, और यूजर्स को अपने मामले के लिए एक एप के जरिए आवेदन करना होगा। लेकिन यहां एक बड़ी समस्या है — अभी तक कोई भी नियम नहीं बनाया गया है कि कौन सी पोस्ट "अपराध" मानी जाएगी।
इसका मतलब है कि अभी तक नियमों का अर्थ किसी अधिकारी के मन के हिसाब से बदल सकता है। एक अधिकारी एक व्यंग्य को आतंकवाद का संकेत मान सकता है, तो दूसरा उसे राजनीतिक व्यंग्य के रूप में देख सकता है। इस अनिश्चितता के कारण लोग चुप हो रहे हैं।
ऐसा क्यों हो रहा है?
ये बदलाव भारत के डिजिटल इतिहास का एक नया अध्याय है। 2017 में जब सोशल मीडिया पर आम लोगों की आवाज़ बढ़ी, तो सरकार ने इसे एक खतरा माना। 2019 में नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान बढ़ा, और अब डिजिटल आजादी को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है। यह वही रास्ता है जो चीन ने अपनाया — डिजिटल नियंत्रण के साथ आर्थिक विकास।
लेकिन भारत चीन नहीं है। हमारी जनता अभी भी आजाद बातचीत के लिए लड़ती है। अगर ये नियम जारी रहे, तो भारत का डिजिटल भविष्य एक बड़े निगरानी राष्ट्र की तरह बन जाएगा — जहां लोग बात करने के बजाय चुप रहेंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या अब सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते?
नहीं, आप अभी भी अपने विचार शेयर कर सकते हैं, लेकिन अब आपके पोस्ट की जांच हो सकती है अगर वह आतंकवाद, घृणा या अश्लीलता को प्रोत्साहित करता है। एक मजाक या व्यंग्य भी अगर किसी को आहत करे तो उसे रिपोर्ट किया जा सकता है। जांच का फैसला एक अधिकारी के हाथ में है, जिसका निर्णय अक्सर अनिश्चित होता है।
क्या ये नियम सिर्फ युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं?
नहीं, ये नियम सभी उपयोगकर्ताओं को प्रभावित करते हैं, लेकिन युवा सबसे ज्यादा प्रभावित हैं क्योंकि वे सोशल मीडिया के सबसे सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। 18-25 वर्ष की आयु के युवाओं में 73% ने अपनी पोस्टिंग कम कर दी है। वयस्क अक्सर अपने खातों को निजी बना लेते हैं, लेकिन युवा तो अपने खाते भी बंद कर रहे हैं।
क्या ये नियम स्वतंत्र व्यक्तित्व के खिलाफ हैं?
हां, कई मानवाधिकार संगठन इसे संवैधानिक आजादी के खिलाफ मान रहे हैं। भारतीय मानवाधिकार आयोग ने अप्रैल में एक आधिकारिक चेतावनी जारी की, जिसमें कहा गया कि "डिजिटल चुप्पी" एक नया रूप है जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है। यह एक ऐसा खतरा है जो भारत के लोकतंत्र के आधार को कमजोर कर सकता है।
क्या भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है?
नहीं, 2020 में भारत ने 224 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया था। 2022 में एक ट्विटर एंट्री के लिए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन अब यह पहली बार है जब नियम सीधे आम यूजर्स के आचरण को नियंत्रित करने की ओर जा रहे हैं — न कि सिर्फ प्लेटफॉर्म्स को।